भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तितली का घर / आर.पी. सारस्वत

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:15, 3 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आर.पी. सारस्वत |अनुवादक= |संग्रह= }} {{...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सज-धज करके कैसी आई,
मैडम बटर फ्लाई।
इस डाली से उस डाली तक
झट से उड़कर जाती,
फूल-फूल के पास पहुँचकर
हँस-हँसकर बतलाती
हँसते रहना ही जीवन है
सुन लो मेरे भाई!
रंग-बिरंगे पंखों से यह
अपनी ओर लुभाती,
जब भी चाहूँ इसे पकड़ना
लेकिन हाथ न आती!
ऐसी बात इसे दादी जी
है किसने समझाई?
चींटी का घर, चूहों का घर
चिड़िया का भी घर है,
नहीं मिला पर तितली का घर
तुमको पता, किधर है?
ढूँढ़ रहा हूँ कब से, अब तक
दिया नहीं दिखलाई!