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खिल-खिल जाएँ सारे पत्ते / ओमप्रकाश सिंहल

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छीन लिये क्यों आज हवा ने
पेड़ों के सब सुंदर कपड़े,
कहाँ छिपाए उसने कपड़े
सारे पेड़ किए बिन कपड़े।

जब सरदी ऋतु आएगी
इन पेड़ों पर क्या बीतेगी?
कैसे काटेंगे अपने दिन?
थर-थर काँपेंगे सारा दिन।

नहीं दीखती कहीं गिलहरी
नहीं कहीं भी चिड़िया का घर,
कहाँ गए सब संगी-साथी
पेड़ अकेले क्यों धरती पर?

नहीं समझ में आता मेरे
किससे जानूँ सारी बातें,
इनको खूब रिझाऊँ कैसे?
खिल-खिल जाएँ सारे पत्ते!