भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपने अंधेरों से हम / अनिरुद्ध उमट

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:19, 15 नवम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध उमट |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> घ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घर के हिस्से करते पिता
कागज पर
अपने हिस्से करते

सब को
समान रूप से
वितरण पश्चात
लौटते जब

सरक जाता
किसी ओर
जनम के हिस्से में
तब तक उनके हिस्से का
अंधेरा

बुला भी नहीं पाते
अपने अंधेरों से हम
उन्हें