भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मीठे अल्फ़ाज़ की जज़्बात पे बारिश करना / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'

Kavita Kosh से
SATISH SHUKLA (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:07, 6 अगस्त 2016 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


मीठे अल्फ़ाज़ की जज़्बात पे बारिश करना
भा गया दिल को मेरे उसका नवाज़िश करना

जिसकी फ़ितरत थी हमेशा से सताइश करना
क्या पता कैसे उसे आ गया साज़िश करना

फ़ितरते-हुस्न में शामिल है सितम आशिक़ पर
फ़ितरते-इश्क़, सितम सह के है नाज़िश करना

मैंने जब उसकी सहेली से कहा, हँसने लगी
रात को छत पे मिले, उससे गुज़ारिश करना

दिल तो दिल है ये अदाओं पे भी आ सकता है
क्या ज़रूरी है बदन की यूँ नुमाइश करना

जिसने उम्मीद का आईना कुचल डाला हो
उससे बेकार है दिल, प्यार की ख़्वाहिश करना

मैं तो शाइर हूँ किया नज़्म तुझे मैंने 'रक़ीब'
"कोई आसां नहीं औरों की सताइश करना"