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साथी घबराना नहीं बढ़ता अंधेरा देखकर / पूजा श्रीवास्तव

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साथी घबराना नहीं बढ़ता अंधेरा देखकर
तीरगी सिमटेगी खुद ब खुद उजाला देखकर

खूबसूरत औरतों का भीगा आँचल क्यों रहा
याद आया माँ के माथे पर पसीना देखकर

तेरे दर के उठ के साकी जाएं तो जाएं कहाँ
दे शराबे बेखुदी खुश हो तड़पता देखकर

आतिशें तो घर जलाएंगी हमें मालूम था
बस मैं हैरां हूँ इन्हें तेरा इशारा देखकर

कीर्तन सज़दा इबादत प्यार नफ़रत सरहदें
थक गए हैं रोज़ ओ शब ये तमाशा देखकर

भूल जाने की कवायद उम्र भर चलती रही
उम्र भर वो और याद आया ये धोखा देखकर