भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अए गमे दिल / आत्म-रति तेरे लिये / रामस्वरूप ‘सिन्दूर’
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:57, 23 नवम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामस्वरूप ‘सिन्दूर’ |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अए गमे-दिल! साथ मेरे तू कहाँ तक जाएगा!
मैकदे तक जाएगा, या आस्ताँ तक जाएगा!
खोज कर हारा, न पाया आज तक उसका पता,
पर मेरा बेलौस नाला जाने जाँ तक जाएगा!
रह गया तनहा मुसाफ़िर जैसा मीरे कारवाँ,
वो उफ़ुक़ के पार, यानी बेकराँ तक जाएगा!
कारवाँ का हर मुसाफ़िर अपनी मंजिल पा गया,
राहबर से कौन पूछे, तू कहाँ तक जाएगा!
हमसफ़र को भी यकीं ‘सिन्दूर’ है भटका हुआ,
रास्ता कोई भी हो मेरे मकां तक जाएगा!