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यादें / श्वेता राय

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तेरी यादों के सूरज की, किरणों से जब जलती हूँ।
तब मैं छंदों में अपने मन के भावों को लिखती हूँ॥
कभी सवैयों कभी गीत औ, ग़ज़लों में सब कहती हूँ।
खुद से खुद की मन पीड़ा को, शब्दों से मैं हरती हूँ॥

निशा निमंत्रण दे जाती हैं, आँखों में भर लाली को।
दीपक बन कर जलते रहना, फैलाना उजियाली को॥
सपनो की शैय्या पर झिलमिल, चंदा से तुम मिल आना।
भोर सुहानी आये जब तक, आँसू बन कर ढल जाना॥

शब्दों के अवगुंठन से मैं, सहज स्वंय को करती हूँ।
खुद से खुद की मन पीड़ा को, शब्दों से मैं हरती हूँ॥

गुलमोहर सी दहकी यादें, तन मन को दहकाती है।
फूलो से होकर सुरभित ये, आकुल उर बहकाती हैं॥
पुरवाई भी छू कर देती, तेरा ही आभाष प्रिये।
जल थल नभ सब मिलकर करते, मुझसे क्यों परिहास प्रिये॥

सूरज को शीतल लिख कर मैं, चंद्र प्रभा से चिढ़ती हूँ।
खुद से खुद की मन पीड़ा को, शब्दों से मैं हरती हूँ...