भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कठोपनिषद / मृदुल कीर्ति

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:09, 31 मई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मृदुल कीर्ति }} Category:लम्बी रचना Category:उपनिषद [[Category:हरिगीत...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ॐ श्री परमात्मने नमः

शांति पाठ

रक्षा करो पोषण करो, गुरु शिष्य की प्रभु आप ही,
ज्ञातव्य ज्ञान हो तेजमय, शक्ति मिले अतिशय मही।
न हों पाराजित हम किसी से, ज्ञान विद्या क्षेत्र में,
हो त्रिविध तापों की निवृति, न प्रेम शेष हो नेत्र में॥