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आग को जब प्यार कह गया / दिविक रमेश
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मैंने कहा प्यार
और उससे उसके अर्थ की जगह आग निकली
मैंने चाहत कहा
और उससे भी अर्थ की जगह आग निकली
मैंने हर बार वह शब्द कहा ऐसे ही
उससे अर्थ की जगह आग ही निकली
ऐसा क्यों हुआ
क्यों बचता रहा आग को आग कहने से
क्यों टालता रहा
भीतर के असल शब्द को
किसी दूसरे शब्द से?
सोचता हूँ
ऐसा क्यों होता है
बहुसंख्यक लोगों!
तुम्हारी तरह बस सोचता हूँ