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किसी की आँख में डोरे, किसी के आँख आती क्यों / शिवशंकर मिश्र

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किसी की आँख में डोरे, किसी के आँख आती क्यों
बिला मतलब तुम्हें पीड़ा यही दिन-रात खाती क्यों

हमारा देश है आजाद, हम आजाद हैं सारे
गला घुटता हमारा क्यों, जबाँ बाहर को आती क्यों

शहर में रोज होते खून हैं दस-बीस की दर से
अदालत दस बरस में एक को फाँसी सुनाती क्यों

जरा-सा डर था कोई, हो गया इतना बड़ा कैसे
अब अपने पाँव चलकर मौत भी आते लजाती क्यों

वही सोचो, वही बोलो, वही सब करना है तुम को
जरा-से फर्क पर दुनिया हमें काफिर बताती क्यों

गला भारी है, भारी चेहरा, भारी बदन उन का
उठाती बोझ क्यो इतना, न कुर्सी टूट जाती क्यों

उरेबी चाल है जिस की, चलन जिसका है फिरकाना
कि ऐसी शख्सियत ‘मिशरा’ वतन में सर उठाती क्यों