भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आग पानी हुई, हुई, न हुई / बलबीर सिंह 'रंग'
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:50, 23 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बलबीर सिंह 'रंग' |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
आग पानी हुई, हुई, न हुई,
मेहरबानी हुई, हुई, न हुई।
कौन जाने फिज़ाये ज़न्नत में,
ज़िन्दगानी हुई, हुई, न हुई।
आप हों, हम हों, सारा आलम हो,
ऋतु सुहानी हुई, हुई, न हुई।
सरफिरे दिल के बादशाहों की,
राजधानी हुई, हुई, न हुई।
‘रंग’ हाजिर है बज़्मे याराँ में,
कद्रदानी हुई, हुई, न हुई।