भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुक्तक / राम लखारा ‘विपुल‘

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:25, 1 जून 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राम लखारा ‘विपुल‘ |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1.
निराशा में सहज उत्साह के कारण ! क्षमा करना
अहेतुक स्वस्ति के निर्लिप्त उच्चारण ! क्षमा करना
विषय से जूझते कुछ प्राण प्रश्नों के निवारण में,
न कर पाए प्रणय के सप्त निर्धारण क्षमा करना।

2.
गगन ने चांदनी सांचे में ढाली है मुहल्ले में।
अकेले शख्स ने यूं जान डाली है मुहल्ले में।
खुशी के रंग होठों पर चमक आशा की आंखों में
कि इक चहरा स्वयं होली दिवाली है मुहल्ले में।

3.
कहानी जिंदगी की है कथानक भी चुटीला है।
नदी जो आंख की उसमें सपन आकंठ गीला है।
उठाएं प्यार के लश्कर तुम्हीं ने जिंदगी से जब
उसी दिन से पड़ा सूना मेरे मन का कबीला है।

4.
अहर्निश चैन रोया है तुम्हारे रूठ जाने से।
सहज उल्लास खोया है तुम्हारे रूठ जाने से।
प्रतीक्षारत तपस्या में हमारे द्वारा का सतिया,
घड़ी भर भी न सोया है तुम्हारे रूठ जाने से।

5.
समस्या हो बड़ी चाहे किसी दिन हल निकलना है।
सनातन है सफ़र केवल मुसाफ़िर ही बदलना है।
हुनर है रोशनी का पर रखों लहजा ज़रा ठण्डा,
अगर सूरज भी हो तुम तो तुम्हें इक शाम ढलना है।