भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फ़िक्र क्या जब / कुमार मुकुल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:46, 23 जुलाई 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार मुकुल |संग्रह=ग्यारह सितम्बर और अन्य कविताएँ / क...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धूप मीठी और चिड़िया बोलती है डाल पर

पर पड़ोसी ढहा सा है दीखता अख़बार पर।


फाकाकशी में भी याँ को सूझती सरगोशियाँ

अगर रखना है तो तू ही रख नज़र व्योपार पर।


जानता है वक़्त उल्टा सा पड़ा है सामने

कौन सीधा सा बना है अपन ही धरतार पर।


हर तरफ कातिल निगाहें और हैं खूँरेज़ियाँ

फ़िक्र क्या जब निगाहबानी यार की हो यार पर।