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अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या / संजय तिवारी

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कलियुग की अदालत में
अगम के अस्तित्व की तलाश
तलाशने वालो के खुद का
कैसा आभास
उन्हें भी होगा एहसास
अंत तो वही होना है
रह जाने वालो को
रामनाम सत्य
 गाकर ही रोना है
उसी सत्य के जन्म की
लकीर
कैसे ये पा सकेंगे
रामनाम सत्य
कैसे ये गा सकेंगे
उन्हें क्यों नहीं होती
अनुभूति
जीवन की रीति
एक राम की ही नहीं
सप्तहरि की भी भी
जननी है यह भूमि
न केवल काल
न ही केवल नेमि
ऋषियों
मुनियो
तपस्वियों के आराध्य
हरि ही साध्य
गुप्तहरि
विष्णुहरि
चक्रहरि
पुण्यहरि
चन्द्रहरि
धर्महरि
अाैर बिल्वहरि
का प्राकट्य
कथाये है अकथ्य
अखिल ब्रमांड नायक
 जगत के हैं नाथ
हे मनुष्य
क्या कर रहा तू उनके साथ
श्रुति ने गाया
अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या
सच में हो सकेगी यह तलाश?
देखो कैसे काँप रही
तुम्हारी देह
ठहर गए
तुम्हारे हाथ