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अरी बावळी दिखता, तुझमे अनुराग नहीं / कपिल भारद्वाज

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अरी बावळी दिखता, तुझमे अनुराग नहीं !

घूंघट में शरमाई आंखे, मन का कोना-कोना चहका,
झिलमिल-झिलमिल बरसे सावन, मौसम का हर कतरा महका,
क्या री भोली यौवन की, तुझमें आग नहीं,
अरी बावली दिखता, तुझमे अनुराग नहीं ।

हम तो ठहरे राही अकिंचन, नूतन पथ पर चलने वाले,
थोड़े सुख के लिए उम्र भर, टुकड़ा-टुकड़ा पलने वाले,
जीवन से भटके सपनों में भी, राग नहीं,
अरी बावली दिखता, तुझमें अनुराग नही ।

तेरी तपती काया छूकर, पानी-पानी हुआ दीवाना,
सारी रात है झूमा तन मन, जैसे कबीर बना मस्ताना,
अरी गोरिया तेरे संगीत में, साज़ नहीं,
अरी बावली दिखता, तुझमे अनुराग नहीं ।