भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कच्ची-पक्की जस मिलि जाई / भारतेन्दु मिश्र

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:58, 28 फ़रवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारतेन्दु मिश्र |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कच्ची-पक्की जस मिलि जाई
हियनै रहिकै खइबा
हम ना सहरै जइबा।

जो-जो सहरै गवा सो वापिस
लउटि न घर का आवा
हुवैंके हुइके रहिगे सबियों
का लरिकवा-बिट्यावा
जहाँ न जंगल अउरु चिरइया
हम कै दिन रहि पइबा।

ना बिलारि चूहा मारै
ना बाँदर डाका डारैं
जहाँ न हरहन के कानन का
कउआ खूँटु निकारैं
जहाँ न हुक्का-आल्हा-सुरती
कइसन द्याँह जियइबा।

मरती बेरा गाँव छोड़ि कै
हम कस सहरै जाई
अपनी-अपनी दउड़-भाग मा
को हमते बतलाई
बारह महिना याकै कोठरी मा
हम की बिधि सोइबा।