भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ये हासिल है तो क्या हासिल बयाँ से / मोमिन
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:54, 6 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोमिन }}ये हासिल है तो क्या हासिल बयाँ से <br> कहूँ कुछ और ...)
ये हासिल है तो क्या हासिल बयाँ से
कहूँ कुछ और कुछ निकले ज़ुबाँ से
बुरा है इश्क़ का अंजाम यारब
बचना फ़ितना-ए-आखिर ज़माँ से
मेरा बचना बुरा है आप ने क्यों
अयादत की लब-ए-मोजज़ बयाँ से
वो आए हैं पशेमाँ लाश पर अब
तुझे ए ज़िन्दगी लाऊँ कहाँ से
न बोलूँगा न बोलूँगा कि मैं हूँ
ज़्यादा बद गुमाँ उस बदगुमाँ से
न बिजली जलवा फ़रमा है न सय्याद
निकल कर क्या करें हम आशयाँ से
बुरा अंजाम है आग़ाज़-ए-बद का
जफ़ा की हो गई खू इमतिहाँ से
खुदा की बेनियाज़ी हाय 'मोमिन'
हम ईमाँ लाए थे नाज़-ए-बुताँ से