भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नासदीय सूक्त, ऋग्वेद - 10 / 129 / 6 / कुमार मुकुल

Kavita Kosh से
Kumar mukul (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:23, 22 मई 2019 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उ प्रकृति तत्‍व के
के जानेला
के ओकर बर्नन करी
कि आख्रिर
कवना कारण से
इ सृष्टि
कइसे आकार लेलक
देवतो लोग
इ सृष्टि के बादे
आकार लेले बाड़न
ए से
के बता सकेला
कि इ सृष्टि कैइसे भइल ॥6॥

को आद्धा वेद क इह प्र वोचत्कुत आजाता कुत इयं विसृष्टिः।
अर्वाग्देवा अस्य विसर्जनेनाथा को वेद यत आबभूव ॥6॥