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ज़ोर से बहती हवा को साँस में भर लीजिए / भरत दीप माथुर

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ज़ोर से बहती हवा को साँस में भर लीजिए
दिन बड़ा गर हो न पाया दिल बड़ा कर लीजिए

दूसरों की ख़ूबियों पर ग़ौर भी कीजे ज़रूर
और अपनी ख़ामियों पर तब्सिरा कर लीजिए

कौन है पानी में कितने क्या पता चलता है दोस्त
सामने वाले को हरगिज़ भी न कमतर लीजिए

आँधियों में गिर गया है गर मकाँ...कोई नहीं!
इस दफ़ा सीमेन्ट-लोहा और बेहतर लीजिऐ

आप भी होंगे यक़ीनन इम्तिहाँ में क़ामयाब
सिर्फ़ अपने हौसले फ़ौलाद से कर लीजिए भरत दीप