भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माँ का प्यार नहीं खोया / रविशंकर मिश्र

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:55, 21 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रविशंकर मिश्र |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुश्किल तो था, पर
मेरा आधार नहीं खोया
पत्नी आयी लेकिन
माँ का प्यार नहीं खोया

एक साथ दोनों होने में
है दुश्वारी भी
जोरू का गुलाम भी
माँ का आज्ञाकारी भी
सबका निभा, किसी का भी
अधिकार नहीं खोया

आकर्षण था एक तरफ तो
एक तरफ सम्मान
दोनों में सन्तुलन बिठाना
रहा कहाँ आसान
सिमटे बहुत मगर अपना
विस्तार नहीं खोया

कहीं आधुनिक सोच
कहीं पर थोड़ा पिछड़ापन
हर मुश्किल निपटा देता है
लेकिन निर्मल मन
कितना अच्छा है, हमने
परिवार नहीं खोया