भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इक तारा हो जाऊँ मैं / सोनरूपा विशाल

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:49, 21 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सोनरूपा विशाल |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इक तारा हो जाऊँ मैं
दूर चली जाऊँ धरती से अम्बर में खो जाऊँ मैं
इक तारा हो जाऊँ मैं।

वहाँ नहीं आएगा कोई मेरी चहक चुराने को
जो सुख मुझको हासिल थे दोबारा उसे घटाने को
लिए अनन्त नींद आँखों में काश आज सो जाऊँ मैं।

इक तारा हो जाऊँ मैं।

जिस पर फूल लदे हों भोले भाले एहसासात के
टूट न पाएं कभी किसी आँधी से ना आघात से
हर दिल में ऐसे पेड़ों के बीजों को बो जाऊँ मैं।

इक तारा हो जाऊँ मैं।

जिन आँखों को रही प्रतीक्षा जीवन के उजियारे की
लेकिन क़िस्मत ने दिखलाई राह सदा अँधियारे की
उन आँखों के आँसू अपनी आँखों से रो जाऊँ मैं।

इक तारा हो जाऊँ मैं।