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कोई चल रहा है / दिनेश्वर प्रसाद

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कोई चल रहा है
कोई चल रहा है
नहीं, कहाँ है कोई आदमी
जो इस गली में चल रहा है ?

छप्पर की ओलती से
पानी चूता है – टप-टप
क्या टप के बाद टप में
कोई नहीं चल रहा है ?
ओलती से गिरते पानी की धुनों में
जाने कौन रात-रात भर चलता है

झींसी भरे एक दिन मैंने
खेत में गड़ा हुआ इन्द्रधनुष देखा था
उसके माथे पर कोई चल रहा था
आसमान से गिरती उजली-उजली आँखों वाला

धूप-बादल बरसात थी
तेलंगाना हो कर ट्रेन से जा रहा था
मुहम्मद कुली कुतुबशाह ने मुझ से कहा –
“देखो-देखो, मिरग !”
देखा, मिरग दौड़ती बूँदों में चल रहा था

(बृहस्पतिवार, 12 अगस्त 2004)