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दोपहर / समृद्धि मनचन्दा
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सुबह और शामें
आस्था से भरी बेला हैं
पर दोपहरें सदा से ही
ख़ाली और निर्लेप रही हैं
ईश्वर के सोने का समय
हलाँकि मैंने देखा है ईश्वर को
दोपहर में मन्दिर के कपाटों के बाहर
हथौडे़ गँड़ासे तसले उठाए
नँगे बदन खड़ा है ईश्वर
जलते तलवों तले सृष्टि दबाए
दोपहरें दिन का सबसे पवित्र समय हैं
ईश्वर के पसीने से भीजती बेला
देखो ! मन्दिर के गर्भ-गृह के बाहर
वो अपने विराट रूप में खड़ा है
पीठ पर सूरज ढोता
तर्जनी पर अम्बर उठाए !