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आपकी आवाज़ हूँ मैं / शिवकुमार 'बिलगरामी'

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आपकी आवाज़ हूँ मैं, आज भी और कल रहूँगा ।

जिस व्यथा ने शक्ति छीनी
आप जिसको सह न पाए,
जिस व्यथा ने शब्द छीने
आप जिसको कह न पाए,

आपकी उस हर व्यथा को गीत गाकर मैं कहूँगा ।

जिस तड़प ने कर दिए हैं
आपके मृदु होंठ नीले,
जिस तड़प ने भर दिए हैं
आँख में आँसू हठीले,

उस तड़प के वेग को अब, मैं तड़प कर ख़ुद सहूँगा ।

जिस हताशा और घुटन में
आपका जीवन पला है,
जिस निराशा और तपन में
आपका तन-मन जला है,

उस निराशा और तपन में, मैं नदी बनकर बहूँगा ।