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रात को हो, दोपहर में हो / रामश्याम 'हसीन'

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रात में हो, दोपहर में हो
घर की बात है घर में हो

मंज़िल तक कैसे पहुँचें
चर्चा यही सफ़र में हो

करो फ़ैसला कुछ भी तुम
जो भी हो पल भर में हो

चाहे जहाँ रहो प्यारे!
हरदम मेरी नज़र में हो

शाइर उसको ही कहिए
जिसका शे' र बहर में हो