भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नई सुबह में / मधुसूदन साहा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:15, 15 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधुसूदन साहा |अनुवादक= |संग्रह=ऋष...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नई सुबह में
नई सोच को
नये लोक से आने दो।
बातें सभी पुरानी छोड़ो,
अंधे विश्वासों को तोड़ो,
उपवन को महकाना है तो
फूलों से फूलों को जोड़ो,
ओस नहाई,
पंखुरियों को
खुलकर अब मुसकाने दो।
पंछी छेड़े नए तराने,
झरने गाए नूतन गाने,
हर डाली पर नए राग के
धुन सिखलाए नये घराने,
मुक्त व्योम की
नई किरण को
नए सुरों में गाने दो।
अच्छाई का परचम फहरे,
कदम उठे तो कभी न ठहरे,
हर अंतर में सम्बंधों की-
गगा-जामुनी लहरें लहरे,
नव विहान में
नई हवा को
तन-मन को सहलाने दो।