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देशहित में बंधु इक दीपक जलाएँ / रुचि चतुर्वेदी

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जिस दिए से मिट रहा हो,
हर अंधेरा,
जिस दिए से हो सके सुख,
का सवेरा।
तो चलो मिलकर नया सूरज उगायें।
देश हित में बंधु इक दीपक जलाएँ॥

तुम जलाओ मैं जलाऊँ,
हौसलों का इक दिया अब।
है निराशा रोकती पग दूर
कर दें भ्रांतियाँ सब।
ये दिया नव गीत बनकर
गा उठेगा,
ये दिया अब जीत का दिनकर
बनेगा।

आत्म बल जिससे बढ़े वह गीत गायें।
देश हित में बंधु इक दीपक जलाएँ॥

वो दिया जो हर निराशा तोड़
देगा एक पल में।
वो दिया जो नेह ज्योति जोड़
देगा एक पल में।
वो दिया जो भारती माँ को
समर्पित हम करेंगे।
वो दिया जो राम के चरणों
में हम मिलकर धरेंगे।

आज संकट का असुर मिलकर भगायें॥
देश हित में बंधु इक दीपक जलाएँ॥