भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

समतुल्य / संगीता कुजारा टाक

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:53, 5 जून 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संगीता कुजारा टाक |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

समंदर उलट रहा था
अपने इतिहास के पन्नों को,
ऐसा कब था
जब दो दरिया मिले थे
और तूफान बाहर की बजाय
अंदर उठने लगा था?
रंग भी
स्वाद भी
लगभग एक से थे?

यह पानियों का कैसा दरिया था
जो उसकी गहराई से ज़्यादा था?

वह ज़वाब ढूँढ ही रहा था
तभी उसे महसूस हुईं
मेरी
दो आँखें!