भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पत्थर -1 / सुधा गुप्ता

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:32, 11 जून 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= सुधा गुप्ता }} <poem> बचपन में दादी मा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बचपन में
दादी माँ की देखा-देखी
पत्थर की प्रतिमा
पूजती थी
जब
बड़ी हुई
तो उसकी निर्रथकता समझ तो पाई;
लेकिन
आदत तो आदत है…
ज़िन्दगी का लम्बा सफ़र
तनहा
तय करने के बाद
जब तुम मिले तो
बस, तुम्हें पूजना शुरू कर दिया
यानी पत्थर पूजा की आदत से
मुक्ति
पाई !

-0-( 2-11-83)