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ये जो अध्यात्म का चोला पहनने वाले हैं / महेंद्र नेह

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ये जो आध्यात्म का चोला पहनने वाले हैं
हर हक़ीक़त को हवा में बदलने वाले हैं

बुनते रहते हैं धु्न्ध में तिलिस्म के जाले
ये फ़िज़ाओं में नशा तारी करने वाले हैं

तरह तरह की अदाओं से, नाज़-नखरों से
एक धोखे भरा जादू सा रचने वाले हैं

जब भी उठती है नई जाग चेतना की लहर
ये उसकी ओर पीठ करके चलने वाले हैं

ज्ञान -विज्ञान से रहते हैं दूर कोसों ये
भ्रम की दुनिया में नए रंग भरने वाले हैं