भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाथी और केले वाला / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:19, 2 अगस्त 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हाथी जी ने सुबह-सुबह से,
खाये साठ परांठे।
केले की दुकान पर जाकर,
दो सौ केले छांटें।
केले वाला बोला भाई,
पहले पैसे लाओ।
पैसे चुक जाएँ, केलों में,
तब ही सूंड लगाओ।
हाथी को अंदाज़ ज़रा भी
उसका यह न भाया।
उठा सूंड से केले वाले,
को ही घर ले आया।
केले वाला काँप रहा है,
थर-थर उसके आगे।
ढूँढ रहा है मौका कैसे,
उसे छोड़कर भागे।