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लालच / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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बीच नगर में पिटा ढिंढोरा,
एक लगाकर दो पाओ।
अगर लगा दो एक लाख तो,
दो लेकर के घर जाओ।

बन्नी मामा लेकर पहुँचे,
छः सौ रुपये पॉकिट में।
और लगा डाले सब रुपये,
बस दुगने की लालच में।

रहे देखते खड़े तमाशा,
हार गए रुपये सारे।
मज़दूरी से कमा लाये थे,
ये सब रुपये बेचारे।

इसी तरह से कई लोगों ने,
हारे रुपये ढेर सारे।
मूर्ख बने थे सभी लोग ये,
केवल लालच के मारे।

चकमा देकर भाग गए फिर,
आयोजन करने वाले।
ठगे गए लालच के कारण,
लोग वहाँ भोले भाले।

कठिन परिश्रम का पैसा ही,
साथ सदा देता आया।
लालच करने वालों ने तो,
ऐसा ही धोखा खाया।