भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भूल पाए न तुझे आज भी रोने वाले / अजय सहाब

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:50, 5 सितम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजय सहाब |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भूल पाए न तुझे आज भी रोने वाले
तू कहाँ है मेरी आँखों को भिगोने वाले ?

हम किसी ग़ैर के हो जायें ये मुमकिन ही नहीं
और तुम तो कभी अपने नहीं होने वाले

सोचते हैं कि कहाँ जा के तलाशें उनको ?
हमको कुछ दोस्त मिले थे कभी ,खोने वाले

रेत के जैसा है अब तो ये मुक़द्दर मेरा
ख़ुद बिखर जाएंगे अब मुझको पिरोने वाले

दर्द और अश्क ज़माने में अज़ल से हैं वही
सिर्फ़ बदले हैं हर इक दौर में रोने वाले

पेड़ का साया तो होता नहीं खुद की खातिर
फ़स्ल अपनी कभी पाते नहीं बोने वाले

दर्द ग़ैरों का भला कौन उठाता है 'सहाब'
सब यहाँ खुद की सलीबों को हैं ढोने वाले