भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अंतहीन यात्रा मेरी / विजय सिंह नाहटा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:50, 27 नवम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय सिंह नाहटा |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अंतहीन यात्रा मेरी
और नीरस पथ पसरा हुआ
काल: ज्यों अजगर-सी फुफकार मारता
मुझको हेर रहा
मरे दोस्त! आओ इस पङाव पर ही सही
तनिक पल पर ठहरें, बतियायें
गुनगुना लें एक प्रणय गीत
नश्वरता के इस उजाड़ सूनेपन में
वही रचेगा
हमारी आत्मा का शिलालेख
मुस्कुराहट की इबारत से।