भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नया गीत लिखने का मन / नरेन्द्र दीपक

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:40, 19 जनवरी 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेन्द्र दीपक |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नया गीत लिखने का मन
अलग सलग दिखने का मन

मन है मैं धूप में जलूँ
कई कई रूप में जलूँ
ऐसा कुछ चलन ही मिले
उम्र सारी जलन ही मिले

गहराई सहने का मन
धार-धार बहने का मन

गीत सभी दुख ही गढ़े
सूली सभी सपने चढ़ें
तार-तार मन सितार हो
ऐसा फिर बार बार हो

धुआँ-धुआँ जलने का मन
बूँद-बूँद ढलने का मन

ओर छोर मिले ना मुझे
कभी भोर मिले ना मुझे
अँधियारा आसपास हो
और और पास पास हो

सुबह दर्द बोने का मन
शाम उसे ढोने का मन