भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इन ग़रीबों के लिए घर कब बनेंगे / राकेश जोशी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:19, 10 फ़रवरी 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राकेश जोशी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGha...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
इन ग़रीबों के लिए घर कब बनेंगे
तोड़ दें शीशे, वह पत्थर कब बनेंगे
कब बनेंगे ख़्वाब जो सच हो सकें
और चिड़ियों के लिए पर कब बनेंगे
लो, बन गए सुंदर हमारे शहर सब
पर, हमारे गाँव सुंदर कब बनेंगे
शर्म से झुकते हुए सर हैं हज़ारों
गर्व से उठते हुए सर कब बनेंगे
योजनाओं को चलाने को तुम्हारे
वो बड़े बंगले, वह दफ़्तर कब बनेंगे
आज तो संजीदगी से बात की है
अब ये सारे लोग जोकर कब बनेंगे
कब तलक कचरा रहेंगे बीनते यूं
तुम कहो, बच्चे ये अफ़सर कब बनेंगे