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फिर से हाथों में तुम्हारे हल तो हो / राकेश जोशी

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फिर से हाथों में तुम्हारे हल तो हो
रास्ते में फिर कोई जंगल तो हो

फिर से नदियों में रहे पानी ज़रा
और तालाबों में कुछ दलदल तो हो

सर छुपाने के लिए धरती है गर
भाग जाने के लिए मंगल तो हो

जंग हो तो देर तक जारी रहे
पहलवानों में कभी दंगल तो हो

आज को जीने का कुछ मक़सद मिले
सामने कोई सुहाना कल तो हो

जेब में अपनी क़लम रखता हूँ मैं
जिससे मन में हौसला-सम्बल तो हो

सर्द रातों में न बाँटो आग पर
बाँटने को हाथ में कंबल तो हो

बंद हों चाहे यहां सब खिड़कियाँ
पर गली में एक सूखा नल तो हो

फिर से चिड़ियों को ज़रा डर तो लगे
आसमां में फिर कोई हलचल तो हो