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विनय पत्रिका-से विनत नैन तेरे / अनुराधा पाण्डेय

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विनय पत्रिका-से विनत नैन तेरे,
इन्हें धार उर में सुमिरता रहूँ मैं।

बना दीप तन को डगर में निरंतर
जलाऊँ विकल साँस को वर्तिका सी।
चखूं प्रीत तेरी सतत जीवनी-सी,
हृदय में रचाये रहूँ संचिका-सी।
बना लूँ विगत सुधि विभा युक्त मधुवन
वहीं लय-प्रलय तक विचरता रहूँ मैं।

इन्हें धार उर में सुमिरता रहूँ मैं।

कभी पंथ की धूप विचलित करे जब,
सुमर मंत्र लूँ छाँव प्रिय! कुंतलों की।
बिते संग तेरे सरस काल जितने,
करूँ याद दुख में मृदुल उन पलों की।
मिले चैन पाकर तुझे धड़कनों में-
व्यथा क्लेश गिरि से उतरता रहूँ मैं।

इन्हें धार उर में सुमिरता रहूँ मैं।

 रचे मोक्ष-सा सत्व अनुराग तेरा।
प्रणय पृष्ठ हो वेद की ज्यों ऋचाएँ,।
पढूं पृष्ठ नित दिन, यही साधना हो,
अमरता दिलाये विरल नय कथाएँ।
जहाँ भी बढ़े पग चहे जिस डगर में
तुझी से तुझी में गुजरता रहूँ मैं।

विनय पत्रिका से प्रणय नैन तेरे।
इन्हें धार उर में सुमिरता रहूँ मैं।