भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माफ़िया ये समय / महेंद्र नेह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:43, 20 मई 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेंद्र नेह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

माफ़िया ये समय
हमको नित्य धमकाता ।

छोड़ दो यह रास्ता
ईमानवाला
हम कहें, वैसे चलो
बदल दो साँचे पुराने
हम कहें, वैसे ढलो
माफ़िया ये समय
हमको नित्य हड़काता ।

त्याग दो ये सत्य की
तोता रटन्ती
हम कहें, वैसा कहो
फेंक दो तखरी धरम की
हम कहें, जैसा करो
माफ़िया ये समय
हमको नित्य दहलाता ।
 
भूल जाओ जो पढ़ा
अब तक किताबी
हम कहें, वैसा पढ़ो
तोड़ दो क़लमें नुकीली
हम कहें, जैसा लिखो
माफ़िया ये समय
हम को नित्य धमकाता ।