भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वीर रस / हरजीत सिंह 'तुकतुक'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:56, 9 अगस्त 2021 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरजीत सिंह 'तुकतुक' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक बार हास्य कवि सम्मेलन में,
हमने शृंगार की कविता सुनाई।
तो एक कवियत्री हमारे पास आई।

बोली जब कविता लिखनी नहीं आती है।
तो क्यों कविता पे ज़ुल्म ढ़ाते हो।
मेरी चोटी को भैंस की पूँछ बताते हो।

और यह कविता तुमने किस महूरत में रची है।
मेरी उपमा देने को भैंस ही बची है।

हमने कहा,
मैडम, हमें अभी अभी,
आपके दिमाग़ में बसी ग़लतफ़हमी दिखी है।

यह कविता हमने आप पे नहीं।
भैंस पे लिखी है।