भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाळण जोग / चंद्रप्रकाश देवल

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:44, 17 जुलाई 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चंद्रप्रकाश देवल |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लाय हरेक ठौड़ लागती सुणी
समदर रै ऊंडै पांणी तगात
बांस-वन में बायरा सूं उपजती दीठी
सोर में पलीता आसरै भड़कती दीठी
नीं नीं व्है जठै
टेम-कुटेम सिळगती दीठी

सावचेत रैवै खलक अस्टपोर
नीं छोडै नेरी, करजळायां पूठै ई
इणरौ कांई भरोसौ, जगत दाखै
सै कीं बळ नै भरम
निजरां सांम्ही करण री हूंस राखै।

लाय लागै इण लाय रै
ओळूं रौ कीं खांगौ नीं व्है इणसूं
औ रौ ओ उडीक रौ धारौ।