भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेम का गणित / चित्रा पंवार

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:23, 10 जुलाई 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चित्रा पंवार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लड़का गणित का छात्र था
उसने प्रेम में भी गणित ढूँढा
सम्बंध जोड़ते समय लाभ हानि के प्रतिशत का गणित
लड़की के प्रेम आग्रह को स्वीकार करने से पूर्व वह
आश्वस्त हो जाना चाहता था
अच्छे बुरे की तमाम प्रायिकताओं के प्रति
लड़का गणित के प्रश्न कागज पर नहीं
लड़की की देह पर उसके आंसुओं की स्याही से सरल करता
वह उसे तब तक तोड़ता
जब तक की वह छोटे से छोटे अभाज्य गुणनखंडो में विभाजित न हो जाती
लंबाई, चौड़ाई, क्षेत्रफल, परिमाप, परिधि का ज्ञान
उसने कक्षा में नहीं
उसकी देह पर ही सीखा था
जब आकृतियों को पढ़ने का जी चाहता
वह उसे आड़ी तिरछी रेखाओं में तोड़ मरोड़ कर
त्रिभुज, चतुर्भुज जो चाहे बना लेता
प्रेम में नित समझोतें करती लड़की की पीठ
आए दिन झुक रही थी गोलाकार
इसलिए उसे वृत्त के सवाल हल करना सबसे सरल लगता
लड़की में रूप और गुण की कोई कमी न थी
किन्तु उसके लिए वह मात्र औसत ही रही
वैल्यू निकालते समय वह एक्स की जगह
लड़की का नाम लिखता
और बहुत कम आँकता
लड़की उसके जटिल प्रश्न से प्रेम के
बड़े, मझले फिर छोटे कोष्ठक में बंद उस बंधन को प्रेम समझती रही
लड़की ने पढ़ा था
बिहारी को
प्रेम हरी को रूप है
वह रैदास को पढ़ कर जानी थी
ढाई आखर का पांडित्य
मीरा का प्रेम के लिए विषपान
वह उर्मिला, यशोधरा की तरह प्रेम में जलना
पद्मावत की तरह मरना जानती थी
वह गणित भी जानती थी केवल प्रेम का गणित
प्यारे सुजान सुनौ यहाँ एक तें दूसरो आँक नहीं
उसके लिए गोल का अर्थ था अपरिमित, अनंत, अपार
जिसका कोई अंत ना हो अर्थात सब कुछ
लड़के के लिए गोल की
परिभाषा थी शून्य
मतलब 'कुछ नहीं'