भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तमन्नाओं को रौंद रहा अहम् / शिव रावल

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:51, 1 अक्टूबर 2023 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिव रावल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब मौत की खबर भेज दो के हालातों से सुलह करना सीख लिया मैंने,
मर-मर के जीना और जी-जी के मरना सीख लिया मैंने,

मुझे मिल गया है वह आइना के जिसमे गैर नज़र आते हैं,
अब तो खुद से ही नफरत करना सीख लिया है मैंने,

तमन्नाओं को रौंद के चलने लगा है ये अहम्,
आरज़ूओं के सर कलम करना सीख लिया है मैंने,

क्या वहशत है किस हद तक गुज़रेगी "शिव"
के बन्दगी हैरान है, दुआ के हाथ खाली हैं

कुछ भूल गए हो तुम या अब सब कुछ याद करना सीख लिया है मैंने