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बाजुओं की थकान जिन्दा रख / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

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बाज़ुओं की थकान ज़िंदा रख।
जीतने तक उड़ान ज़िंदा रख।

आँधियाँ डर के लौट जाएँगीं,
है जो ख़ुद पे गुमान ज़िंदा रख।

तेरा बचपन ही मर न जाय कहीं,
वो पुराना मकान ज़िंदा रख।
 
बेज़बानों से कुछ तो सीख मियाँ,
तू भी अपनी ज़बान ज़िंदा रख।

नोट चलता हो प्यार का भी जहाँ,
एक ऐसी दुकान ज़िंदा रख।

जान तुझमें भी डाल देंगे कभी,
नाक, आँखें व कान ज़िंदा रख।