भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरी प्रतीक्षा / सुरजीत पातर

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:55, 12 मई 2024 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरजीत पातर |अनुवादक=चमन लाल |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लगता है,
कहीं और हो रही है मेरी प्रतीक्षा
और मैं यहाँ बैठा हूँ


लगता है,
मैं ब्रह्माण्ड के संकेत नहीं समझता

पल-पल की लाश
पुल बनकर
मेरे आगे बिछ रही है
और मुझे लिए जा रही है
किसी ऐसी दिशा में
जो मेरी नहीं

गिर रहा है
मेरी उम्र का क्षण-क्षण
कंकड़ों की तरह
मेरे ऊपर
ढेर बन रहा बहुत ऊँचा
नीचे से सुनती नहीं मुझे मेरी आवाज़

आधी रात में
जब कभी जागता हूँ
सुनता हूँ कायनात को
तो लगता है
बहुत बेसुरा गा रहा हूँ मैं
छोड़ चुका हूँ सच का साथ

मुझे कुचलने पड़ेंगे अपने पदचिह्न
लौटाने होंगे अपने बोल
कविताओं को उलटा टाँगना होगा
घूम रहे सितारों-नक्षत्रों के बीच

घूम रहे ब्रह्माण्ड के बीच
सुनाई देती है
किसी माँ की लोरी

लोरी से बड़ा नहीं कोई उपदेश
चूल्हे में जलती आग से नहीं बड़ी कोई
रोशनी

लगता है,
कहीं और हो रही है मेरी प्रतीक्षा
और मैं यहाँ बैठा हूँ ।

पंजाबी से अनुवाद: चमन लाल