भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गिरिजाकुमार माथुर

Kavita Kosh से
Mahashakti (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 12:54, 14 अगस्त 2006 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

== बरसों के बाद कहीं ==


बरसों के बाद कभी हमतुम यदि मिलें कहीं, देखें कुछ परिचित से, लेकिन पहिचानें ना।

याद भी न आये नाम, रूप, रंग, काम, धाम, सोचें,यह सम्मभव है - पर, मन में मानें ना।

हो न याद, एक बार आया तूफान, ज्वार बंद, मिटे पृष्ठों को - पढ़ने की ठाने ना।

बातें जो साथ हुई, बातों के साथ गयीं, आँखें जो मिली रहीं - उनको भी जानें ना।