भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख़ाल उसके ने दिल लिया मेरा / शाह हातिम

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:46, 14 अप्रैल 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शाह हातिम }} <Poem> ख़ाल उसके ने दिल लिया मेरा तिल में...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ख़ाल उसके ने दिल लिया मेरा
तिल में उसने लहू पिया मेरा

जान बेदर्द को मिला क्यों था
आगे आया मेरे किया मेरा

उसके कूचे में मुझको फिरता देख
रश्क खाती है, आसिया मेरा

नहीं शमा-ओ-चिराग़ की हाजत
दिल है मुझे बज़्म का दिया मेरा

ज़िन्दगी दर्दे-सर हुई ’हातिम’
कब मिलेगा मुझे पिया मेरा?


शब्दार्थ :
ख़ाल = तिल
रश्क = ईर्ष्या
आसिया = चक्की