भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कहा करौं वह मूरति जिय ते न टरई / कुम्भनदास

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:34, 5 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुम्भनदास }} Category:पद <poeM>कहा करौं वह मूरति जिय ते न...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहा करौं वह मूरति जिय ते न टरई।

सुंदर नंद कुँवर के बिछुरे, निस दिन नींद न परई॥

बहु विधि मिलन प्रान प्यारे की, एक निमिष न बिसरई।

वे गुन समुझि समुझि चित नैननि नीर निरंतर ढरई॥

कछु न सुहाय तलाबेली मनु, बिरह अनल तन जरई।

'कुंभनदास लाल गिरधन बिनु, समाधान को करई।