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गमों से प्यार न करता तो और क्या करता / बुनियाद हुसैन ज़हीन

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गमों से प्यार न करता तो और क्या करता
ये दिल फ़िगार न करता तो और क्या करता

वो ज़ुल्म करता था मज़लूम पे तो मैं उस पर
पलट के वार न करता तो और क्या करता

वो अहद करके गया था कि लौट आऊंगा
मैं इन्तिज़ार न करता तो और क्या करता

था जिस फ़साने का हर लफ़्ज़ दास्ताने-अलम
वो अश्कबार न करता तो और क्या करता

समझ लिया मुझे मंसूर एक दुनिया ने
कुबूल दार न करता तो और क्या करता

जो ज़ख्म तूने दिए उनको गम के धागे में
पिरो के हार न करता तो और क्या करता

मेरे यकीं पे जो उतरा नहीं खरा तो उसे
मैं शर्मसार न करता तो और क्या करता

ज़हीन उसके सिवा कौन था मेरा हमदर्द
मैं उससे प्यार न करता तो और क्या करता