भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रात में भी / दिविक रमेश

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:40, 17 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिविक रमेश }} <poem> रात में भी रात की सी बात नहीं है ग...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रात में भी रात की सी बात नहीं है
गाँव है कि गाँव में देहात नहीं है

न सही उरियाँ मगर दिल में तो निहाँ थी
आज तो पर दिल में भी वह बात नहीं है

किस किस को आपने न गुनहगार कहा है
है क्या जगह ऐसी भी जहाँ घात नहीं है?

इस दौर में भी मिल गया झुक झुक के कई बार
कैसे कहूँ कि कोई खुराफात नहीं है

टेढ़ा सवाल, पर भला मैं क्या जवाब दूँ
जो आदमी न रह सका बेबात नहीं है

क्या कहूँ कि लौटिए भी घर को ए दिविक
कीजिए भी क्या जो मुलाक़ात नहीं है